Sunday, July 20, 2008

मुसीबत में 'अन्नदाता'


देश में किसानों की हालत किसी से छिपी नहीं है। अपने खून-पसीने से अन्न का उत्पादन कर दूसरों का पेट भरने वाले किसान आज खुद भूखे पेट सोने के लिए मजबूर हैं। कभी बेमौसमी बारिश उन पर कहर ढाती है तो कभी सूखा। न तो उन्हें सूदखोरों से चंगुल से मुक्ति मिल रही है और न ही बैंकों से कर्ज लेने के एवज में कमीशन देने से। समाज का हर वर्ग उसकी मजबूरी का फायदा उठा रहा है।


कर्ज के दलदल में फंसे किसान मजबूरी में आत्महत्या कर रहे हैं। उन पर कर्ज का बोझ कम न होने का कारण मंडी में फसल का उचित मूल्य न मिलना है। खेती के लिए इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं की कीमत में भारी इजाफा हुआ है। इसके मुकाबले फसलों की कीमत में वृद्धि नहीं हुई।किसानों में एक-दूसरे की देखादेखी मशीनरी खरीदने का रुझान भी घातक सिद्ध हुआ है। ऐसे कई किसान हैं, जिनके पास कम जमीन है। इसके बावजूद वह मात्र दिखावे के लिए बैंक से कर्ज लेकर ट्रैक्टर आदि खरीद रहे हैं।


किसानों में सामाजिक कार्यक्रमों व रस्मों के लिए हैसियत से बढ़कर खर्च करने की रुचि ने भी उनको कर्ज के जाल मे फंसाया है। विशेष तौर पर शादी में एक-दूसरे से अधिक खर्च करने की रुचि ने स्थिति को गंभीर बना दिया है। किसानों में नशे की लत भी उनके कर्ज में फंसने का कारण बनी हुई है। यहीं कारण है कि सरकार के लाख दावों के बावजूद किसानों की हालत नहीं सुधर पा रही है। बढ़ती महंगाई ने भी उनका जीना दुष्वार कर रखा है।


चूंकि उनकी आमदनी में कमी हो रही है और खर्र्चो में लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में वे किस तरह अपने परिवार का भरण-पोषण करें। और सामाजिक स्तर के अनुरूप पर परिवार को सुशिक्षित कर सकें।

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