छई छप छई
जैसा करोगे वैसा भरना ही पड़ेगा।
प्रकृति से छेड़छाड़ का खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा।।
पहले तो बाज नहीं आए अपनी हरकतों से।
अब क्यों चिल्ला रहे हो खुदा बचाए मुसीबतों से।।
कहीं बारिश तो कहीं बाढ़ का कहर।
करते रहो छई छप छई।।
नहीं तो क्या होगा अंजाम
7 Comments:
बिलकुल सही फ़रमाया
संदेश देने का यह भी बेहतरीन तरीका है..
***राजीव रंजन प्रसाद
टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
bahut badhia,badhai aapko
बधाई बंधु, सच से लोगों को रूबरू कराने के लिए। और अंतिम कमेंट छई छप छई, खूब।
अब तक इन्सान ने मनमानी की अब प्रकृति करेगी .हमने जो किया है भुगतेंगे .
बहुत अच्छे.
सुंदर लिखा है.
बधाई.
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