Sunday, August 17, 2008

छई छप छई

जैसा करोगे वैसा भरना ही पड़ेगा।
प्रकृति से छेड़छाड़ का खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा।।

पहले तो बाज नहीं आए अपनी हरकतों से।
अब क्यों चिल्ला रहे हो खुदा बचाए मुसीबतों से।।

कहीं बारिश तो कहीं बाढ़ का कहर।
करते रहो छई छप छई।।

7 Comments:

At August 17, 2008 at 10:17 PM , Blogger राज भाटिय़ा said...

बिलकुल सही फ़रमाया

 
At August 17, 2008 at 10:46 PM , Blogger राजीव रंजन प्रसाद said...

संदेश देने का यह भी बेहतरीन तरीका है..


***राजीव रंजन प्रसाद

 
At August 17, 2008 at 11:07 PM , Blogger सचिन मिश्रा said...

टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.

 
At August 17, 2008 at 11:41 PM , Blogger Anil Pusadkar said...

bahut badhia,badhai aapko

 
At August 18, 2008 at 3:09 AM , Blogger Nitish Raj said...

बधाई बंधु, सच से लोगों को रूबरू कराने के लिए। और अंतिम कमेंट छई छप छई, खूब।

 
At August 18, 2008 at 3:10 PM , Blogger L.Goswami said...

अब तक इन्सान ने मनमानी की अब प्रकृति करेगी .हमने जो किया है भुगतेंगे .

 
At August 18, 2008 at 5:50 PM , Blogger बालकिशन said...

बहुत अच्छे.
सुंदर लिखा है.
बधाई.

 

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