शर्माओ मत, हिंदी बोलो
आज राष्ट्रीय हिंदी दिवस है, फिर हिंदी विकास और प्रसार की बातें होंगी, लेकिन ये केवल बातों तक ही सीमित रहेंगी। क्योंकि हमें राष्ट्रभाषा हिंदी से नहीं, बल्कि विदेश ले जाने वाली भाषाओं से लगाव है तो फिर हिंदी का सम्मान कौन करेगा और कैसे होगा? इसकी किसी को कोई चिंता नहीं। चलो..खैर, कोई बात नहीं..दुविधा तो राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाने वाले देश में इसके उचित सम्मान की है।
भले ही विदेश मे हिंदी को सम्मान मिल रहा है। उनमें हिंदी बोलने व लिखने के प्रति उल्लास है। फिर भी अपने यहां हिंदी राष्ट्रभाषा होने के बावजूद यह अपने उचित सम्मान को जद्दोजहद कर रही है। क्योंकि हम हिंदी बोलने में शर्म महसूस करते हैं, जबकि जापानी, चाइनीज व अंग्रेज इसे अपनी अंतरराष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी की बजाय इसे सम्मानपूर्वक सीखने व लिखने की ललक पाले हैं। ऐसे में अपने देश में राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाने की बात केवल औपचारिकता तक ही सीमित है।
हम हिंदुस्तानी होने के कारण हिंदी को राष्ट्रभाषा तो मानते हैं, लेकिन अभी भी हम अंग्रेजी भाषा के शब्दों का हिंदी में पर्याप्त शब्द नहीं ढूंढ पाएं हैं। आजादी के बाद भी उच्च न्यायालय से लेकर निचली अदालतों के किसी भी न्यायाधीश ने आज तक हिंदी में अपना निर्णय नही सुनाया है। ऐसे में हम बात करते हैं, राष्ट्रीय हिंदी दिवस की गरिमा की? अभी भी हिंदी अपने सम्मान के लिए संघर्षरत है।
केंद्र सरकारों की नीति अंग्रेजी का भविष्य संवारने व हिंदी का बिगाड़ने वाली ही रही है। इस तरह से हम फिर 'गुलामी' की तरफ बढ़ रहे है। लेकिन ऐसा हमारे साथ कब तक होता रहेगा? यही तो समस्या है। राष्ट्रभाषा होने के बावजूद हिंदी का न तो उचित विकास हुआ या हो रहा है और न ही इसके स्वरूप को वह सम्मान मिल पाए है, जो इसे मिलना चाहिए। अगर हिंदी से है प्यार तो शर्माओ मत..हिंदी बोलो, हिंदी अपनाओ।