कब लेंगे सबक
अगर पिछली घटनाओं से सबक लिया जाता तो आज फिर श्रद्धालुओं की जयघोष मौत की चीखों में तब्दील न होती।
इसे मंदिर प्रशासन की लापरवाही कहें या सरकार की। लेकिन राजस्थान के जोधपुर में मेहरानगढ़ किले के पास स्थित चामुंडा देवी मंदिर में मंगलवार सुबह मची भगदड़ में जिन 185 लोगों की जान चली गई क्या वह लौट आएंगे?
ये तो जग जाहिर है कि पहले और अंतिम नवरात्रों को मंदिरों में भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। ऐसे में कोई अनहोनी भी हो सकती है। क्योंकि हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित नयना देवी मंदिर में श्रावणी नवरात्र के दूसरे दिन अफवाह के चलते मची भगदड़ में कई लोगों की मौत हो गई थी। इसलिए उसे इस तरह की अनहोनी को रोकने के लिए चौकस रहना चाहिए था।
फिर भी प्रशासन सोता रहा। एक घंटे तक उसे हादसे का पता ही नहीं चला। पुलिस एक तो देर से पहुंची और फिर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज कर दिया। फिर क्या था भगदड़ मच गई और कईयों की जान चली गई। क्या लाठीचार्ज से भी कभी भीड़ नियंत्रित हुई है?
एक बात और है कि श्रद्धालुओं में भी धैर्य कम हो रहा है, इसे समझने की जरूरत है। आखिर लोगों में जल्दबाजी की होड़ इतनी तीव्र क्यों हो जाए कि पैरों के नीचे गिरती मासूम जानें किसी को नजर ही न आएं?
आस्था के नाम पर सब कुछ अर्पण करने का माद्दा दिखाने का दावा करने वाले लोग क्यों अहं से भर सिर्फ अपने लिए सोचने लग जाते हैं? लोग हादसों से नहीं मरते, बल्कि उसके बाद उपजी हताशा और केवल अपनी जान बचाने के कारण मचती जद्दोजहद से मरते हैं।
इसके बावजूद कोई सबक नहीं लिया जाता। कुछ दिन तक दुहाई दी जाती है पर धरातल पर ऐसा कुछ नहीं किया जाता कि ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो। जब तक पिछली घटनाओं से सबक जाएगा, तब तक इसी तरह भगदड़ मचती रहेगी।
धार्मिक स्थलों पर होने वाले हादसों को कैसे रोका जा सकता है? ऐसा क्या किया जाए, ताकि नयना देवी मंदिर और चामुंडा देवी मंदिर जैसे हादसे न दोहराए जाएं?
8 Comments:
sahi kaha aapney aisy ghatnon sey sabak lena jaroori hai.
आप ने सही कहा कुछ प्रशासन की , कुछ मंदिर बालो की ओर बाकी हमरी भी गलती हे , भेड बकरियो की तरह से किसी भी अफ़गाह पर इधर उधर बिना सोचे समझे भागाना कहा की अकल मन्दी हे.
धन्यवाद,
सही कह रहे हैं, जाने कब!!
सबक सीखना जानते तो देश सुधर नही जाता,सबक के नाम पर इन्होने सिर्फ़ बयानबाज़ी सीखी है। अच्छ लिखा आपने।
जोधपुर मँदिर मेँ ऐसी वारदात का होना कितना अनुचित है जो कि सर्वथा रोका जा सकता था - हम भारतीय लोग कब, इस भीड मेँ फँसे भेडोँ के झुँड से अलग बन पायेँगेँ ? यहाँ अमरीका मेँ भी भारतीय यही करते हैँ अगर शादी ब्याह का भोज हो या कोई अन्य भारतीय त्योहार :-(
अनुशाशन और शिस्तबध्ध होना हमारी आदतोँ के खिलाफ है ..जो अफसोस जनक बात है ..अच्छी पोस्ट ..और जय माता दी !
aapke vichar vilkul sateek hai,
----------------Vishal
bahut sahi.......achha likha hai
bahut jarooree hai aisee ghatnaon se seekh lena.
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