Saturday, March 27, 2010

ताकि रोशन रहे दुनिया


अंधेरे में रहना किसे अच्छा लगता है, पर यह अंधेरा धरती की बेहतरी के लिए हो तो यह कदम सचमुच ही तारीफ़ के काबिल है। धरती को ग्लोबल वार्मिग के खतरे से बचाने की इस मुहिम के तहत एशिया, प्रशांत, मध्य-पूर्व और अमेरिका समेत दुनिया के 150 से अधिक देशों के हजारों शहर आज 27 मार्च यानी शनिवार की रात एक घंटे के लिए अंधेरे में डूब जाएंगे।

2007 में आस्ट्रेलिया के सिडनी से शुरू इस जन अभियान को अर्थ आवर 60 का नाम दिया गया है। इसमें 60 अंक, 60 मिनट की उस अवधि की ओर इशारा करता है, जब सारे घरों और इमारतों की बत्तियां बुझी रहेंगी।

तो आप भी अपने घरों, आफिस या दुकानों की बत्तियां बुझा कर पर्यावरण को बचाने की मुहिम में योगदान दें, ताकि रोशन रहे दुनिया। कृपया धरती की सेहत की खातिर रात 8.30 से 9.30 के बीच कैंडिल लाइट डिनर लेने का कष्ट करें।

Monday, March 22, 2010

बहाएं नहीं, बचाएं पानी


'जल ही जीवन है' के मायने अगर हम आज नहीं समझे तो भावी पीढ़ी बूंद-बूंद को तरसेगी। भू-गर्भ जल वैज्ञानिकों की माने तो मौजूदा व भावी जल संकट से निजात पाने के लिए भू-गर्भ जल का सिर्फ दोहन हीं नहीं इसे रीचार्ज भी करना होगा।

दुखद स्थिति यह है कि 'वाटर हार्वेस्टिंग' के प्रति न तो आम जनता सचेत है और न ही शासन-प्रशासन चिंतित। वर्षा जल का 80 फीसदी हिस्सा समुद्र में बह रहा है। इसे रोकने के लिए कंटूर, गार्डवाल, चेक डैम, रीचार्ज पिट आदि का निर्माण नहीं हुआ तो धरती सूख जाएगी, इसके बाद की परिकल्पना सहजता से की जा सकती है।

इसे भी जानें
-पेयजल आपूर्ति व स्वच्छता विभाग के मानदंडों पर गौर करें तो झरना, वाश व बाथ बेसिन, शेविंग, ब्रश करने आदि के अत्याधुनिक तरीके औसत से सौ गुना से भी अधिक जल की बर्बादी करते हैं।
- स्नान करने के क्रम में लगातार झरना बहाने से नब्बे लीटर पानी बहता है। साबुन लगाते समय झरना बंद कर देने से सत्तर लीटर पानी बचाया जा सकता है।
-ब्रश करते समय चलता हुआ नल पांच मिनट में पैंतासील लीटर पानी बहाता है। मग का इस्तेमाल कर 44.5 लीटर पानी की बचत की जा सकती है।
- हाथ धोने के दौरान खुला नल दो मिनट में 18 लीटर पानी बहाता है। हाथ धोने में मग के इस्तेमाल से 17.75 लीटर पानी बचाया जा सकता है।
- शेविंग के वक्त बहता हुआ नल दो मिनट में 18 लीटर पानी बहाता है। मग से शेविंग कर 16 लीटर पानी की बर्बादी रोकी जा सकती है।
-सौ वर्गफीट की छत से 10 लोगों को पानी बरसात के दिनों में यदि हम सौ वर्गफीट की छत का पानी संचय करते हैं, तो पूरे एक साल तक आठ से 10 लोगों को प्रतिदिन 213 लीटर पानी मिल सकता है।

वर्षा जल संग्रहण मामले के विशेषज्ञों के मुताबिक यदि किसी वर्ष औसतन 1300 मिमी. बारिश होती है तो 'वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम' अपनाकर सौ वर्गफीट के छत से प्रतिवर्ष एक लाख 30 हजार लीटर पानी संचित किया जा सकता है। अलबत्ता, वाष्पीकरण के बाद इस जल का 60 फीसदी हिस्सा ही भू-गर्भ में प्रवेश करता है। फिर भी यह एक परिवार को पूरे साल पानी पिलाने में सक्षम है।

Saturday, March 6, 2010

कुछ तो शर्म करो

आश्रम में मची भगदड़ और उसमें मारे गए बच्चों व महिलाओं के परिजन भले ही गहरे शोक के सागर में डूब गए हों, पर कृपालु महाराज और उनकी मंडली को जरा सा भी पछतावा नहीं है। ये महाशय इस घटना में मारे गए लोगों के परिजनों के जख्मों पर मलहम लगाने के बजाय उस पर नमक डालने का काम कर रहे हैं। कृपालु का कहना है कि लोग अपनी मौत के जिम्मेदार खुद हैं, वहीं आश्रम के एक डाक्टर ने इसके लिए ईश्वर को दोषी ठहराने से भी गुरेज नहीं किया।

डाक्टर का कहना है कि जिस तरह भगदड़ मची थी, उससे कई लोगों की जानें जा सकती थी पर प्रशासन की चौकसी से कई जानें बचाई जा सकीं। यह भगवान की ही लीला थी, जो यह हादसा हुआ। प्रशासन की बयानबाजी से सुनने व पढ़ने वालों को भले ही शर्म आ जाए, पर क्या करूं शर्म इन्हें तो आती नहीं। प्रशासन का कहना है कि अच्छा हुआ जो महिलाएं और बच्चे अधिक मरे। भगवान का शुक्र है कि उन्होंने बड़े व बुजुर्ग लोगों को बचा लिया।

कृपालु ने कहा कि लोग अपनी मौत के जिम्मेदार खुद हैं। हमने किसी को भी नहीं बुलाया, बल्कि वो अपनी मर्जी से यहां आए थे। इनको पता तो तब चलता, जब इनके सगे-संबंधी मारे जाते। ये वहीं कृपालु है जिनपर दुष्कर्म व यौन शोषण का आरोप भी लग चुका है।

मनगढ़ हादसे पर सियासत भी तेज हो गई है। पर इस हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों के जख्म कैसे भरेंगे। कोई इस पर अफसोस जताएगा तो कोई निंदा करेगा पर इससे क्या होगा। कैसे भरेंगे जख्म।

Friday, March 5, 2010

तो न मचती भगदड़

एक तरफ लालच, दूसरी तरफ अव्यवस्था। यही लालच और अव्यवस्था उनके लिए काल बन गया। आस्था का सैलाब पलक झपकते ही मातम में बदल गया। संत कृपालु महाराज के भक्तिधाम मंदिर आश्रम में थाली, रुमाल और बीस रुपये के नोट के लिए मची होड़ में इस कदर अव्यवस्था फैली कि भगदड़ मच गई। चीख-पुकार के बीच लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे, रौंदने लगे। देखते ही देखते वहां लाशें बिछ गई। मौका था कृपालु महाराज की पत्‍‌नी की बरसी पर भंडारे का।

थाली, रुमाल और बीस रुपये के नोट का लालच उनके लिए मौत का संदेश लेकर आया। इन्हें हासिल करने के लिए ही कृपालु महाराज के आश्रम में सुबह से ही भीड़ जुटना शुरू हो गई थी। लोगों को संभालना मुश्किल हो रहा था। तेज धूप ने लोगों में बेचैनी बढ़ी और इससे लोहे के गेट पर बोझ बढ़ता गया। महिलाएं अपने साथ बच्चों को इसलिए लेकर आई थीं, ताकि वे तीन-तीन, चार-चार थालियां हासिल कर सकें। यही लालच और अव्यवस्था उनके लिए काल बन गया।

इतने बड़े आयोजन के लिए न तो प्रशासन से अनुमति ली गई, और न ही प्रशासन को सूचना ही दी गई। कार्यक्रम स्थल पर फायरब्रिगेड या एंबुलेंस की एहतियाती व्यवस्था नहीं की गई। अगर इतने बड़े आयोजन से पहले आश्रम की ओर से पुख्ता व्यवस्था की जाती तो न तो भगदड़ मचती न उनकी जान न जाती। न बच्चे अनाथ होते, न वो विधवा होती और न ही उनके जिगर के टुकड़ों की जान जाती..