Sunday, July 20, 2008

असुरक्षित महिलाएं


समय के साथ भले ही सब कुछ बदल गया हो, पर महिलाओं के प्रति पुरुषों की क्रूरता का रवैया शायद अभी तक नहीं बदला है। यहीं कारण है कि कार्यस्थल व सड़कें तो दूर की बात है अपने घरों में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।



महिलाएं व युवतियां ही नहीं मासूम बच्चे भी बहशी दरिंदों की हवस का शिकार बन रहे हैं। कहीं, पड़ोसी मासूम बच्चे से दुष्कर्म करता है तो कहीं ससुर ही अपनी बहू की अस्मत लूटता रहता है। आए दिन ऐसी घटनाएं होनी आम बात हो गई है। क्यों हो रहा है ये सब। बहशी दरिंदों का इतना नैतिक पतन क्यों हो रहा है। आए दिन हो रही दुष्कर्म की घटनाओं का कारण चाहे जो भी हो, पर आपराधिक प्रवृत्ति स्वस्थ समाज के लिए कदापि ठीक नहीं है।



जब तक समाज के हर वर्ग के लोग महिलाओं के प्रति अपनी मानसिकता में बदलाव नहीं लाएंगे, तब तक स्थिति में सुधार होना मुमकिन नहीं है। अगर लोग अपने नजरिये में जरा सा भी बदलाव ले आएं, तो शायद काफी हद तक समस्या का समाधान हो जाए।


कैसे बुझेगी प्यास


अगर ऐसे ही दुरुपयोग होता रहा तो अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए होना तय है। जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर आने वाले समय में देश में सबसे बड़ी समस्या जल संकट की होगी इसमें दो राय नहीं है।
चूंकि जलवायु परिवर्तन से हिमखंड पिघल रहे हैं, जिसकी वजह से नदियों में पानी आ रहा है। लेकिन इन हिमखंडों के पिघलने के बाद नदियों में कहां से पानी आएगा। इस कारण कृषि व बिजली का उत्पादन प्रभावित होना तय है। लोगों को खेती के लिए बारिश पर निर्भर होना पड़ेगा।


हालांकि देश के कई हिस्सों में तो अभी से ही जलसंकट गहराने लगा है। कहीं पानी खारा है तो कहींपीने लायक नहीं। दिल्ली के ही कई इलाकों में पानी के लिए ऐसी मारामारी मची है कि पूछो मत। सप्लाई के लिए आने वाले पानी के टैंकर को देखकर लोग खासकर महिलाएं टूट पड़ती हैं मानों उन्हें नया जीवन मिल गया हो। और जब वह काफी धक्कामुक्की के बाद पानी भरने में कामयाब हो जाती हैं तो ऐसा लगता है कि मानों उन्होंने जग जीत लिया है।


यानी अभी से जब पानी के लिए ये सब हो रहा है तो आगे क्या होगा? इसलिए अगर अभी से ही लोग चेत जाएं व पानी का दुरुपयोग न करें तो आगे समस्या कुछ हद तक कम हो सकती है।

मुसीबत में 'अन्नदाता'


देश में किसानों की हालत किसी से छिपी नहीं है। अपने खून-पसीने से अन्न का उत्पादन कर दूसरों का पेट भरने वाले किसान आज खुद भूखे पेट सोने के लिए मजबूर हैं। कभी बेमौसमी बारिश उन पर कहर ढाती है तो कभी सूखा। न तो उन्हें सूदखोरों से चंगुल से मुक्ति मिल रही है और न ही बैंकों से कर्ज लेने के एवज में कमीशन देने से। समाज का हर वर्ग उसकी मजबूरी का फायदा उठा रहा है।


कर्ज के दलदल में फंसे किसान मजबूरी में आत्महत्या कर रहे हैं। उन पर कर्ज का बोझ कम न होने का कारण मंडी में फसल का उचित मूल्य न मिलना है। खेती के लिए इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं की कीमत में भारी इजाफा हुआ है। इसके मुकाबले फसलों की कीमत में वृद्धि नहीं हुई।किसानों में एक-दूसरे की देखादेखी मशीनरी खरीदने का रुझान भी घातक सिद्ध हुआ है। ऐसे कई किसान हैं, जिनके पास कम जमीन है। इसके बावजूद वह मात्र दिखावे के लिए बैंक से कर्ज लेकर ट्रैक्टर आदि खरीद रहे हैं।


किसानों में सामाजिक कार्यक्रमों व रस्मों के लिए हैसियत से बढ़कर खर्च करने की रुचि ने भी उनको कर्ज के जाल मे फंसाया है। विशेष तौर पर शादी में एक-दूसरे से अधिक खर्च करने की रुचि ने स्थिति को गंभीर बना दिया है। किसानों में नशे की लत भी उनके कर्ज में फंसने का कारण बनी हुई है। यहीं कारण है कि सरकार के लाख दावों के बावजूद किसानों की हालत नहीं सुधर पा रही है। बढ़ती महंगाई ने भी उनका जीना दुष्वार कर रखा है।


चूंकि उनकी आमदनी में कमी हो रही है और खर्र्चो में लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में वे किस तरह अपने परिवार का भरण-पोषण करें। और सामाजिक स्तर के अनुरूप पर परिवार को सुशिक्षित कर सकें।

कैसे भरेगा पेट

सरकार के लाख जतन के बावजूद महंगाई और आबादी सुरसा की तरह मुंह फैलाए जा रही है। खाद्य भंडार खाली हो रहे हैं, अनाज घट रहा है। अगर यहीं हाल रहा तो आगे चलकर कैसे भर पाएगा बढ़ती आबादी का पेट।

महंगाई पर बचाव करने के कांग्रेस की झोली के सारे तर्क व तीर अब लगभग खत्म हो चुके हैं। मुद्रास्फीति का आंकड़ा ऊंचाई की ओर बढ़ता देख अब कांग्रेस ने बचाव के लिए परमाणु करार को नया ढाल बनाया है। कांग्रेस का तर्क है कि करार को अंजाम देकर भविष्य में महंगाई को काबू में किया जा सकता है। पर क्या यह मुनासिब है? चूंकि पब्लिक सब जानती है, भले ही वह कुछ न कहे यह और बात है।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) जितना परमाणु करार के लिए बेकरार है, अगर इतना ही बढ़ती महंगाई व आबादी को रोकने का प्रयास करता तो शायद कुछ ठीक होता। लेकिन न तो सरकार ने इस ओर ध्यान दिया, और न ही खुद को आम जनता का सबसे ज्यादा हितैषी बताने वाले वामदलों ने। हालांकि दिखावे के लिए ही सही पर विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कुछ हद तक महंगाई व करार को लेकर सरकार पर प्रहार जरूर किया। वह भी इसलिए क्योंकि भाजपा को इनके सहारे सत्ता में आने का रास्ता नजर आ रहा है।

कुल मिलाकर आम जनता को ज्यादा दिन तक धोखा नहीं दिया जा सकता है। हर चीज की सब्र की सीमा होती है। हो सकता है कि आगामी चुनाव में जनता संप्रग को अपनी ताकत का अहसास करा दे।